70+ Sanskrit Quotes With Meaning in Hindi and English

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दोस्तों आज इस पोस्ट में हम आपको संस्कृत भाषा में सुविचार हिंदी में अर्थ के साथ (Sanskrit Quotes with Meaning) में बताने वाले हैं। जिससे आपको बहुत अच्छे अच्छे संस्कृत भाषा में सुविचार देखने को मिलेंगे।

आप इन संस्कृत भाषा में सुविचार (Sanskrit Quotes) को अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं या इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में भी शेयर कर सकते हैं।

तो आइए जाने कुछ अच्छे संस्कृत भाषा में सुविचार (Sanskrit Quotes) आप सभी सुविचार को निचे पढ़ सकते हैं। और कॉपी भी कर सकते हैं कहि और लिखने या इस्तेमाल करने के लिए।

Sanskrit Quotes with Meaning

(1)

॥ विद्या ददाति विनय विन्याद याति पात्रताम्
पत्रत्वात् धनमाप्रोति धनात् धर्म तत: सुखम् ॥

ज्ञान विनम्रता प्रदान करता हैं, विनम्रता से योग्यता आती हैं और योग्यता से धन प्राप्त होता हैं, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता हैं और सुखी रहता हैं।

Knowledge gives humility, from humility comes merit and from merit comes wealth, so that one does the work of righteousness and lives happily.

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(2)

॥ अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥॥

विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है – आयु, विद्या, यश और बल ॥

Four qualities develop in the person who serves the humble and experienced constantly – age, knowledge, fame and strength.

(3)

॥ अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् ॥

यह मित्र है, यह मित्र नहीं है, यह छोटे दिमागों की गणना है।

This is a friend, this is not a friend, this is the calculation of small minds.

(4)

चंदन शीतल लोके चंदनादपि चंद्रमा:
चन्द्रचंद न्योमर्ध्य शीतला साधुसंगति: ॥

इस दुनियाँ में चन्दन को सबसे अधिक शीतल माना जाता हैं।
पर चंद्रमा चंदन से भी शीतल होता हैं, लेकिन एक अच्छा दोस्त चंद्रमा और चंदन से शीतल होता हैं।

Sandalwood is considered the most cooling in the world.
The moon is cooler than sandalwood, but a good friend is cooler than the moon and sandalwood.

(5)

नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥

कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है,
अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं का राजा बन जाता है ॥

No one else consecrates a lion like the king of the forest,
He becomes the king of animals based on the strength of his prowess.

(6)

यदा, यदा, हि, धर्मस्य, ग्लानिः, भवति, भारत,
अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, आत्मानम्, सृजामिहम्।।

श्री कृष्णा: जब जब भी और जहां जहां भी, हे अर्जुन, पुण्य/धर्म
की हानि होती है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ।

Sri Krishna: Whenever and wherever there is a decline in
virtue/religious practice, O Arjuna, and a predominant rise of irreligion—at that time I descend Myself.

(7)

यथा चित्त तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रिया:
चित्ते वाचि क्रियांयांच् साधुनामेंकुरप्ता।।

अच्छे लोग वही बात बोलते हैं जो उनके मन मे होती हैं। अच्छे लोग जो बोलते हैं वहीं करते हैं ऐसे पुरुषों के मन वचन व कर्म में समानता होती हैं।

Good people speak only what is in their minds. Good people do what they speak; there is equality in the mind, words and deeds of such men.

(8)

दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।।

दिनभर ऐसा कार्य करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके।

Do such a thing throughout the day, so that you can sleep peacefully at night.

Inspirational Sanskrit Quotes with Meaning

(9)

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः

आत्मा को शस्त्र नहीं काटते, अग्नि जलाती नहीं, जल भिगोता नहीं, वायु सुखाती नहीं।।

Weapons do not cleave the soul, fire does not burn it, water does not wet it, and the wind does not dry it.

(10)

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ॥

One should not mourn the past and should not worry about the future, the wise work only in the present.

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(11)

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषित
मूढ़े पाधानखंडेशु रत्न संज्ञा विधीयते।

इस धरती पर तीन रत्न हैं जल, अन्न और शुभ वाणी
पर मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं।

Water, food and good words are the three gems on this earth.
But foolish people call pieces of stone as gems.

(12)

ददाति प्रतिग्रहनाती मुहयमख्याति पृच्छति
भुङ्क्ते भोजयते चौव शड़ीवध प्रीति लक्षणम।

लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना
और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण हैं।

Take, give, eat, feed, tell secrets
And listening to them are all 6 signs of love.

(13)

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः।

कोई भी काम मेहनत से ही पूरा होता है, बैठे-बैठे हवाई किले बनाने से नहीं अर्थात सिर्फ सोचने भर से नहीं।
ठीक उसी प्रकार सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं चला जाता।

Any work is accomplished by hard work, not just by thinking.
In the same way, the deer does not enter the mouth of the sleeping lion.

(14)

आरोग्यं विद्वत्ता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म ।
स्वाधीनता च पुंसां महदैश्वर्यं विनाप्यर्थे: ।।

आरोग्य विद्वता सज्जनों से मैत्री श्रेष्ठ कुल में जन्म दूसरे के ऊपर
निर्भर ना होना यह सब धन नहीं होते हुए भी पुरुषों का ऐश्वर्य है।

Health, knowledge, friendship with gentlemen, birth in the best family, above others
Not to be dependent is the glory of men even after not having all this wealth.

(15)

शरीरस्य गुणानाश्च दूरम्अन्त्य अन्तरम् ।⁣⁣
शरीरं क्षणं विध्वंसि कल्पान्त स्थायिनो गुणा: ।।

शरीर और गुण इन दोनों में बहुत अन्तर है।
शरीर थोड़े ही दिनों का मेहमान होता है जबकि गुण प्रलय काल तक बने रहते हैं। ⁣

There is a lot of difference between the body and the qualities. The body is a guest for a few days whereas the qualities remain till the doomsday.

(16)

रामो विग्रहवान् धर्मस्साधुस्सत्यपराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानां मघवानिव।।

भगवान श्रीराम धर्म के मूर्त स्वरूप हैं, वे बड़े साधु व सत्यपराक्रमी हैं।
जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक है, उसी प्रकार भगवान श्रीराम हम सबके नायक है।

Lord Rama is dharma incarnate. He is pious.
His strength is truth. He is king of all the worlds like Indra to the gods.

(17)

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम।
उदार चरिता नाम तु वसुधैव कुटुंबकम ।।

यह मेरा है , वह पराया है , ऐसी गणना छोटे हृदय के लोग करते हैं।
विशाल हृदय वालों के लिए तो सारी पृथ्वी ही कुटुंब हितेषी के समान है।

This is mine, that is someone else’s, such calculations are done by small-hearted people.
For those with a big heart, the whole earth is like a family well-wisher.

(18)

यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥

दूसरे लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार
को कार्य पूरा हो जाने के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है।

The person who knows his actions, behaviour, confidentiality, and thoughts
after completion of the task is the same person who is intelligent.

(19)

तुलसी के पीछे पाप से हरी चर्चा न सुहाय
जैसे स्वर के वेग से भूख विदा हो जाए ।।

तुलसीदास जी कहते हैं पिछली बड़ी भूलों के कारण उन्नति के लिए की गई चर्चा
उसी प्रकार नहीं सुहाती जिस प्रकार बुखार के रोगी की खाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है।

Tulsidas ji says that due to the big mistakes of the past, the discussion was done for progress.
It doesn’t suit in the same way as the desire of a patient to eat ends with a fever.

(20)

किमप्यस्ति स्वभावेन सुन्दरं वाप्यसुन्दरम् ।
यदेव रोचते यस्मै तद्भवेत्तस्य सुन्दरम् ॥

किसी भी वस्तु की सुन्दरता और कुरूपता का कारण उसके स्वभावगुण कहाँ होते है,
जो जिसको प्रिय है, वही उसको सुन्दर प्रतीत होती है।

Is there anything that is beautiful or ugly inherently?
Whatever appeals to whomever, looks beautiful to him.

(21)

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे,
उसी तरह से यह रक्षा सूत्र तुम्हें बांधती हुं। हे रक्षा तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।

I am tying a Raksha to you, similar to the one tied to Bali the powerful king of demons.
Oh Rakshaa, be firm, do not waver.

(22)

विद्या ददाति विनयं विनयात याति पात्रम।
पात्र्त्वात धन्माप्नोति धनात धर्म ततः सुखम।।

विद्या विनम्रता देती है, विनय शील होने से पात्रता आती है,
पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और सुख दोनों प्राप्त होते हैं।

Knowledge gives humility, humility brings eligibility,
Wealth is attained by eligibility, both religion and happiness are attained by wealth.

(23)

धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् ।
लाभानां श्रेय आरोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा ॥

अन्नों में उत्तम निपुणता है। धनों में उत्तम शास्त्र-ज्ञान है।
लाभों में उत्तम नीरोग (उत्तम स्वास्थ्य) है। सुखों में उत्तम सन्तोष है।

Skill is superior to material things knowledge is superior to wealth.
Health is superior to profits and contentment is the best form of happiness.

(24)

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ll

मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है परिश्रम
जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।

Laziness resides in human body is their biggest enemy

(25)

सर्व धर्म समा वृत्तिः सर्व जाति समा मतिः।
सर्व सेवा परानीति , रीतिः संघस्य पद्धति ।।

सभी धर्मों के साथ समान वृत्ति सभी जातियों के साथ समानता
की बुद्धि तथा लोगों के साथ परायणता का व्यवहार संघ की पद्धति है।

equality with all religions equality with all castes
Sangh’s method of dealing with people’s wisdom and piety.

(26)

उप्तं सुकृतबीजं हि सुक्षेत्रेषु महाफलम् ।

सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान् फल देता है।

The seed of good works, sown in the right place gives great results.

(27)

कुलीनमकुलीनं वा वीरं पुरुषमानिनम्।
चारित्रमेव व्याख्याति शुचिं वा यदि वाऽशुचिम्।।

चरित्र ही अकुलीन को कुलीन, भीरू(कायर) को वीर, और अपावन को पावन सिद्ध करता है।

It is only the character that tells whether a man is highborn or not,
brave or only proud of his manliness, honest or dishonest.

(28)

विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥

विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं।

Scholar, Expertise, Humility, Generosity, wise and
always in dhyana and Happy is the virtue of a Guru.

(29)

पुस्तकस्था तू या विद्या ,परहस्तं गतं धनम।
कार्यकाले समुत्पन्ने , न सा विद्या न तत धनम ।।

पुस्तक में स्थित विद्या, दूसरे के हाथों में गया हुआ धन,
कार्य के समय आवश्यकता पड़ने पर न व धन काम आता है और ना वह विद्या।

Knowledge in a book, wealth in the hands of others,
Neither money nor knowledge comes in handy at the time of work.

(30)

सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः।
संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्॥

सारे संग्रहों का अंत उनके क्षय में ही है। भौतिक उन्नतियों का अंत पतन में ही है।
सारे संयोगों का अंत वियोग में ही है। इसी प्रकार संपूर्ण जीवन का अंत मृत्यु में ही होने वाला है।

All things will ultimately get destroyed, what rises comes down.
All unions end in separation, all lives end in death.

(31)

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।

मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।

The Mind is the only reason for confinement and salvation of a person.

(32)

कालोऽयं विलयं याति भूतगर्ते क्षणे क्षणे ।
स्मृतयस्त्ववशिष्यन्ते जीवयन्ति मनांसि न: ।।

प्रत्येक क्षण, समय अतीत की खाई में गायब हो जाता है,
केवल स्मृतियाँ (यादें) रह जाती हैं, और वे सदैव हमारे मन को सजीव रखती हैं।

Every moment, time disappears into the ditch of the past. Only memories remain and they enliven our minds.

(33)

विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्।
कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम्॥

कुरुप का रुप विद्या है, तपस्वी का रुप क्षमा है,
कोकिला का रुप स्वर है, और स्त्री का रुप पातिव्रत्य है।

The form of the ugly is knowledge, the form of the ascetic is forgiveness,
The form of the nightingale is voice, and the form of a woman is pativratya.

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(34)

अन्तो नास्ति पिपासायाः सन्तोषः परमं सुखम् ।
तस्मात्सन्तोषमेवेह परं पश्यन्ति पण्डिताः ॥

तृष्णा अनंत है, और संतोष परम् सुख है।
इस लिए विद्वज्जन संतोष को ही इस संसार में श्रेष्ठ समझते हैं।

There is no limit to greed, and contentment is the ultimate happiness,
so a wise man is always happy with what he has.

(35)

न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु: ।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा ।।

न कोई किसी का मित्र होता है,
न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

Neither is anyone’s friend nor enemy, because of work and
circumstances that people become friend and enemies.

Sanskrit quotes life, motivation

(36)

ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।

लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और
उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।

Take, give, eat, feed, tell secrets and
Listening to them are all 6 signs of love.

(37)

नास्ति विद्यासमं चक्षु: नास्ति सत्यसमं तप:।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।।

विद्या के समान कोई नेत्र नहीं, सत्य के समान कोई तप नहीं,
आसक्ति (राग) के समान कोई दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं है।

There is no eye like knowledge, no penance like truth,
no sorrow like attachment and there is no happiness like a sacrifice.

(38)

उपदेशोऽहि मूर्खाणां प्रकोपाय न शांतये।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम्॥

मूर्खों को सलाह देने पर, उन्हें गुस्सा आता है यह उन्हें शांत नहीं करता है।
जिस प्रकार सांप को दूध पिलाने पर उसका जहर बढ़ता है।

Advice given to fools, makes them angry and not calm them down.
Just like feeding a snake with milk, increases its venom.

(39)

वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं।।

जिस मनुष्य की वाणी मीठी हो, जिसका काम परिश्रम से भरा हो,
जिसका धन दान करने में प्रयुक्त हो, उसका जीवन सफ़ल है।

The man whose speech is sweet, whose work is full of hard work,
Whose money is used in charity, his life is successful.

(40)

श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्॥

सुनकर ही मनुष्य कोे धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर ही वह दुर्बुद्धि का त्याग करता है।
सुनकर ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है, और सुनकर ही मोक्ष प्राप्त होता है।

Only after hearing one understands dharma, malignity vanishes,
He gets knowledge and attains salvation (Moksha) by listening.

(41)

न गृहं गृहमित्याहुः गृहणी गृहमुच्यते।
गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यं सदृशं मतम्।।

घर तो गृहणी (घरवाली) के कारण ही घर कहलाता है।
बिन गृहणी तो घर जंगल के समान होता है।

It is because of the housewife in the house that it is called a house.
Without a housewife, a house is like a forest.

(42)

त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः ।।

जो धर्मप्रद वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोले,
वह मूर्ख (मानो) पके हुए फल को छोड़कर कच्चा फल खाता है।

Ignoring, sweet & sane words, and uttering harsh words
is like eating unripe fruits when ripe fruits are available.

(43)

मा बिभीहि देवात्।
किन्तु बिभीहि कर्मणः।
क्षाम्यति देवः नतु कर्म।

ईश्वर से नही अपने कर्म से डरना चाहिए
क्योकि ईश्वर क्षमा कर देते है परन्तु कर्म नही।

Don’t fear god fear karma.god forgives karma doesn’t.

(44)

न हि कश्चित्विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति ।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल
के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है।

No one knows what will happen to whom tomorrow.
So a wise man should do all of tomorrow’s tasks today.

(45)

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

सफलता के लिए इच्छाओं की बजाय कोशिशों की आवश्यकता होती है।

Efforts, not desires, lead to success.

(46)

सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु।

सभी को सुखी और समृद्ध बनाये

May everyone be happy and prosperous.

(47)

सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥

क्षमा करने से सभी कार्ये में सफलता मिलती है ।

Forgiveness brings success in all work.

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(48)

असतो मा सद्गमय।

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।

Lead me from the unreal to the real.

(49)

सहायः समसुखदुःखः ॥

जो सुख और दुःख में बराबर साथ देने वाला होता है सच्चा सहायक होता है।

The one who gives equal support in happiness and sorrow is a true helper.

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(50)

आत्मनो मोक्षार्थम् जगत् हिताय च।

अपने मुक्ति और संसार के हित के लिए।

For one’s own salvation and for the welfare of the world.

(51)

प्रेम शांतिः आनंदश्च।

प्यार, शांति और आनंद।

Love, peace and happiness.

(52)

आनंदः अस्ति स्वीकृतिः

आनंद स्वीकृति है।

Happiness Is Acceptance.

(53)

कालः सर्वं विरोपयति

समय हर जख्म को भर देता है।

Time heals everything.

(54)

।। एतदपि गमिष्यति ।।

यह भी गुजर जाएगा।

This, too, will pass.

(55)

भयमेवास्ति शत्रुः

भय ही शत्रु है।

Fear is the only enemy.

(56)

मा कदापि त्यज।।

कभी हार न मानना।

Never Give Up.

(57)

पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते।

सद्गुण सर्वत्र अपना पदचिन्ह लगाते हैं।

Good qualities put their footprints everywhere.

(58)

अहमस्मि योधः

मे एक योद्धा हूं।

I am a fighter.

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(59)

शाश्वतं जीवनम्, अमरं प्रेम।।

अनन्त जीवन, अमर जुनून।

Eternal Life, Undying Passion.

(60)

सदैव देवत्वं दर्शयामि।

मैं सदा देवत्व प्रकट करता हूँ।

I always manifest divinity.

(61)

न्यूनं वदतु, सत्यं वदतु।

कम बोलो, सच बोलो।

Speak less, speak the truth.

(62)

जीवनं लघु अस्ति, स्वतन्त्रतया जीवतु।

जिंदगी छोटी है, खुल कर जिओ।

Life is short, live it freely.

(63)

जीवने सर्वं केनचित् कारणेन वा अन्येन वा भवति।

लाइफ में हर चीज किसी न किसी वजह से होती है।

Everything in life happens for some reason or the other.

(64)

जीवने मैत्री नास्ति, मित्रेषु जीवनम् अस्ति।

जिंदगी में दोस्ती नहीं, दोस्तों में जिंदगी होती है।

There is no friendship in life, there is life in friends.

(65)

अतिशयेन अपेक्षा दुःखानां कारणम्।

हद से ज्यादा उम्मीद ही दुखों का कारण है।

Excessive expectation is the cause of sorrows.

(66)

परिवर्तनं कुर्वन्तः एव वर्धन्ते।

वही बढ़ता है जो बदलता है।

Only those who change grow.

(67)

यदि उत्थितुम् इच्छसि तर्हि पतनस्य भयं त्यजतु।

ऊपर उठना है तो गिरने का भय छोड़ दो।

If you want to rise, leave the fear of falling.

(68)

प्रत्येकं क्षणं नूतनः आरम्भः एव।

हर पल एक नई शुरुआत है।

Every moment is a new beginning.

(69)

केवलं कार्यस्य आदतिः एव भवन्तं सफलं कर्तुं शक्नोति।

काम करने की आदत ही आपको सफल बना सकती है।

Only the habit of working can make you successful.

(70)

परिश्रमं कुर्वन्तु, जीवनं भवन्तं अवश्यमेव अवसरं दास्यति यदि अद्य न तर्हि श्वः।

मेहनत करते रहो, ज़िंदगी आज नहीं तो कल मौका जरूर देगी।

Keep working hard, life will definitely give you a chance if not today then tomorrow.

(71)

जगति सर्वेषां कृते एकमेव वस्तु प्राप्यते, तत् कालः।

दुनिया में सबको एक ही चीज बराबर मिलती है, वो है वक्त।

Everyone gets only one thing in the world, that is time.

(72)

महत्कृतं येन केनापि कदापि न भयम् अभवत् ।

जिसने भी किया है कुछ बड़ा वो कभी किसी से नहीं डरा।

Whoever has done something big has never been afraid of anyone.

(73)

समयं भवतः समयं कर्तुं समयः भवति।

वक्त को अपना वक्त बनाने में वक्त लगती है।

It takes time to make time your time.

(74)

परिश्रमः कदापि न विफलः भवति।

कठोर परिश्रम कभी भी विफल नहीं होता।

Hard work never fails.

(75)

॥ स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्याय्येन मार्गेण महीं महीशाः
गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ॥

लोगों का कल्याण हो। पृथ्वी के शासक पृथ्वी का उचित रूप से परिपालन करें। गायों और विद्वानों का सदैव​ शुभ हो। सभी लोग सुखी रहें।

May there be the well-being of people. May its rulers guard and foster the earth in a befitting manner. May there always be prosperity for cattle and scholars. May all the people be happy.

(76)

॥ उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥

अपने मन की शक्ति द्वारा स्वयं को ऊपर उठाएँ, न कि स्वयं को नीचा दिखाएँ,
क्योंकि मन स्वयं का मित्र भी हो सकता है और शत्रु भी।

Elevate yourself through the power of your mind, and not degrade yourself,
for the mind can be the friend and enemy of the self.

(77)

॥ वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥

वसुदेव के पुत्र कृष्ण को प्रणाम, जिसने कंस और चाणूर जैसे असुरों का वध किया,
जो देवकी के लिए महान् आनंद का स्रोत है, और जो जगत् का आध्यात्मिक गुरु है।

Obeisance to Kṛiṣhṇa, the son of Vasudeva, who killed the demons Kaṃsa and Cāṇūra, who is the source of great joy to Devakī, and who is the spiritual master of the world.

(78)

॥ धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥

आहत धर्म आहत करता है। रक्षित धर्म रक्षण करता है।
इसीलिए धर्म को आहत नहीं करना चाहिए, ताकि आहत धर्म हमें आहत न करे।

Vitiated dharma vitiates. Protected dharma protects.
Therefore dharma must not be vitiated, lest vitiated dharma vitiate us.

(79)

॥ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

इस को (आत्मा को) शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती,
जल गला नहीं सकता, और वायु सुखा नहीं सकती।

No weapon can cut it (the self, the soul), nor can fire burn it,
nor water drench it, nor wind wither it.

(80)

॥ ‌बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥

समबुद्धियुक्त मनुष्य इस जीवन में ही शुभ और अशुभ प्रतिक्रियाओं से छुटकारा पा लेता है।
इसलिए तू समत्वरूप योग में लग जा। यह योग ही कर्मों में कुशलता है।

Equipped with understanding, one can renounce both good and bad reactions in this world. Thus, get engaged in equanimous yoga. Yoga is the art of working skillfully.

(81)

॥ ‌‌राज्यं दास्ये न देवेभ्यो वीरभोग्या वसुंधरा
क्ञ्रणं दास्यामि ते रुद्र देवानां पार्टिसिने ॥

(शङ्खचूड ने कहा,) मैं यह राज्य देवताओं को नहीं लौटाऊंगा क्योंकि यह पृथ्वी महान् योद्धाओं की है।
हे शिव! देवताओं के प्रति तुम्हारे पक्षपात के विरुद्ध मैं तुमसे लड़ूंगा।

(Śaṅkhacūḍa said,) I will not return this kingdom to the gods as this earth belongs to great warriors. Oh Śiva! I’ll fight you for your partial behaviour towards gods.

(82)

॥ ‌‌यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

जब जब धर्म का पतन और अधर्म का वृद्धि होती है, हे अर्जुन, तब मैं अवतारित होता हूँ।

Whenever there is a decline in righteousness and an increase in unrighteousness, oh Arjuna, I manifest myself.

(83)

॥ ‌‌उक्तवानस्मि दुर्बुद्धिं मन्दं दुर्योधनं पुरा
यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः ॥

दुष्ट मन्दबुद्धि दुर्योधन को मैंने पहले ही कहा था कि जहाँ कृष्ण है वहाँ धर्म है और जहाँ धर्म है वहाँ विजय है।

I have told this in the past to Duryodhana who is wicked and does not possess wisdom, that where there is Kṛṣṇa, there is dharma, and where there is dharma, there is victory.

(84)

॥ ‌‌प्रार्थयामहे भव शतायुः।
ईश्वरः सदा त्वां च रक्षतु
पुण्यकर्मणा कीर्तिमर्जय
जीवनं तव भवतु सार्थकम् ॥

हम प्रार्थना करते हैं कि तुम सौ साल जियो। ईश्वर हमेशा तुमहारी रक्षा करे।
तुम अपने पुण्यकर्मों से कीर्ति अर्जित करो। तुमहारा जीवन सार्थक हो।

I have told this in the past to Duryodhana who is wicked and does not possess wisdom, that where there is Kṛṣṇa, there is dharma, and where there is dharma, there is victory.

(85)

॥ ‌‌सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥

सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय को एक समान समझकर युद्ध करो।
ऐसा करने से तुम्हें पाप नहीं लगेगा।

Fight by treating happiness and distress, loss and gain,
victory and defeat, and by doing so, you shall not incur sin.

(86)

॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥

रघुनाथ का चरित सौ करोड़ गुणा विस्तृत है।
इसका एक-एक अक्षर मनुष्यों के बड़े-बड़े पापों का विनाश करता है।

The deeds of Raghunātha are prolific a hundred-crore-fold.
Each letter of it can destroy the biggest sins of humans.

तो दोस्तों इस तरह से आज हमने आपको संस्कृत भाषा में सुविचार हिंदी में अर्थ के साथ (Sanskrit Quotes with Meaning) में बताया है। आप ये सुविचार अपने दोस्तों के साथ या फिर सोशल मीडिया में शेयर कर सकते हैं।

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