अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता, विश्व महिला दिवस पर कविता, महिला दिवस पर शायरी, (mahila diwas par kavita, Women’s day poetry in Hindi, Happy Women’s Day Poem in Hindi)
दोस्तों महिलाएं समाज का एक अहम हिस्सा हैं लेकिन वक्त के साथ महिलाएं समाज और राष्ट्र के निर्माण का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं।
घर-परिवार से सीमित रहने वाली महिलाएं जब चारदीवारी से बाहर निकल अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ी तो उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिलने लगी।
खेल जगत से लेकर मनोरंजन तक, और राजनीति से लेकर सैन्य व रक्षा मंत्रालय तक में महिलाएं न केवल शामिल हैं बल्कि बड़ी भूमिकाओं में हैं।
महिलाओं की इसी भागीदारी को बढ़ाने और अपने अधिकारों से अनजान महिलाओं को जागरूक करने व उनके जीवन में सुधार करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।
हर साल 8 मार्च को दुनिया के तमाम देशों में महिला दिवस के मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
आज हम आपके लिए कुछ बेहतरीन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता लेकर आये हैं। हम आज आपको सबसे अच्छे महिला दिवस पर कविता यहाँ पर देने वाले हैं।

आप इन महिला दिवस पर कविता को अपनी महिला दोस्त, अपनी माँ, अपनी बहन या अपनी पत्नी के साथ शेयर कर सकते हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला की बधाई दे सकते हैं।
Table of Contents
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता (Women’s Day Poetry in Hindi) 2025
सरल सुपावन कोमल नारी ।
निर्भर जिस पर दुनियां सारी ।।
माँ बेटी बहिना बहू नामा ।
निज परिवार बनावत धामा ।।
कोमल हृदय सुपावन बानी ।
धरमशील अतिसय गुणखानी ।।
धर्म कर्म अति निपुण विवेका ।
बल प्रताप सब एक ते एका ।।
साहस शील विनय अनुगामी ।
तेजोमयी अरु अन्तरयामी ।।
दृढ़संकल्पित तन मन प्यारा ।
मुट्ठी में जिनके जग सारा ।।
आन मान है शान निराली ।
मात्रृ शक्ति मुस्कान निराली ।।
नभ जल थल में कर्म निरत है ।
विस्मित जिनसे आज जगत है ।।
सबसे पूजित सबसे प्यारी ।
भूमंडल की सिगरी नारी ।।
नारी शक्ति को शीश नवाते ।
“महिला दिवस” हैं आज मनाते ।
पुरुष प्रधान जगत में मैंने, अपना लोहा मनवाया।
जो काम मर्द करते आये, हर काम वो करके दिखलाया
मै आज स्वर्णिम अतीत सदृश, फिर से पुरुषों पर भारी हूँ
मैं आधुनिक नारी हूँ।।
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!
नारी को खुश रखो, नहीं तो पछताओगे,
पा नारी का प्रेम, जगत से तर जाओगे।
नारी है अनमोल, प्रेम सब इनसे कर लो,
नारी सुख की खान, खुशी जीवन में भर लो।
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!
मैं एक दरवाज़ा थी
मुझे जितना पीटा गया
मैं उतना ही खुलती गई।
अंदर आए आने वाले तो देखा–
चल रहा है एक वृहत्चक्र–
चक्की रुकती है तो चरखा चलता है
चरखा रुकता है तो चलती है कैंची-सुई
गरज यह कि चलता ही रहता है
अनवरत कुछ-कुछ।।
नारी तुम आस्था हो तुम प्यार, विश्वास हो,
टूटी हुयी उम्मीदों की एक मात्र आस हो,
अपने परिवार के हर जीवन का तू आधार हो,
इस बेमानी से भरी दुनिया में एक तुम ही एक मात्र प्यार हो,
चलो उठों इस दुनिया में अपने अस्तित्व को संभालो,
सिर्फ एक दिन ही नहीं,
बल्कि हर दिन नारी दिवस मना लो।
मन ही मन में रोती फिर भी बाहर से हँसती है बार-बार बिखरे बालों को सवारती है
शादी होते ही उसका सब कुछ पीछे छुट जाता है सखी – सहेली,आजादी, मायका छुट जाता है
अपनी फटी हुई एड़ियों को साड़ी से ढँकती है स्वयं से ज्यादा वो
परिवार वालों का ख्याल रखती है सब उस पर अपना अधिकार जमाते वो सबसे डरती है।
सुरभित बनमाल हो, जीवन की ताल हो।
मधु से सिंचित-सी, कविता कमाल हो।
पत्थर बन जाती हूं कभी, कि बना दूं पारस ।
मैं किसी अपने को, रहती हूं खुद ठोकरों में पर।।

साहस, त्याग, दया ममता की, तुम प्रतीक हो अवतारी हो।
वक्त पड़े तो, लक्ष्मीबाई, वक्त पड़े तो झलकारी हो,
आँधी हो तूफान घिरा हो, पथ पर कभी नहीं रूकना है।।
अपनी संस्कृति की, आहट हो स्वर्णिम आगत की।
तुम्हे नया इतिहास देश का, अपने कर्मो से रचना है!!
वो तो दफ्तर भी जाती हैं,
और अपने घर परिवार को भी संभालती हैं।
एक बार नारी की ज़िंदगी जीके तो देखों,
अपने मर्द होने के घमंड यु उतर जायेंगा,
अब हौसला बन तू उस नारी का,
जिसने ज़ुल्म सहके भी तेरा साथ दिया।
शादी होकर लड़की जब ससुराल में जाती है
भूलकर वो मायका घर अपना बसाती है
जब वो घर में आती है तब घर आँगन खुशियो से भर जाते हैं
सारे परिवार को खाना खिलाकर फिर खुद खाती है
जो नारी घर संभाले तो सबकी जिंदगी सम्भल जाती है
बिटिया शादी के बाद कितनी बदल जाती है।
सत्य मार्ग, दिखलाने वाली, रामायण हो, गीता हो तुम।
रूढ़ि विवशताओं के बन्धन, तोड़ तुम्हें आगे बढ़ना है।।
नारी सरस्वती का रूप हो तुम
नारी लक्ष्मी का स्वरुप हो तुम
बढ़ जाये जब अत्याचारी
नारी दुर्गा-काली का रूप हो तुम।
नारी तेरे रूप अनेक – समाज और नारी कविता
नारी तेरे रूप अनेक, सभी युगों और कालों में है तेरी शक्ति का उल्लेख ।
ना पुरुषों के जैसी तू है ना पुरुषों से तू कम है।।
बलिदान बताकर रखा है तू कोमल है कमजोर नहीं ।
पर तेरा ही तुझ पर जोर नहीं तू अबला और नादान नहीं ।।
नारी को सम्मान दिलाने का अभियान चलाकर रखा है ।
बैनर और भाषण एक दिन का जलसा और तोहफा एक दिन का ।।
सक्षम है बलधारी है – महिला के सम्मान में कविता
सजग, सचेत, सबल, समर्थ, आधुनिक युग की नारी है।
मत मानो अब अबला उसको , सक्षम है बलधारी है।।
नारी खुशियों का संसार हो तुम
नारी प्रेम का आगार हो तुम
जो घर आँगन को रोशन करती
नारी सूरज की सुनहरी किरण हो तुम।
नारी कभी कोमल फूल गुलाब हो तुम
नारी कभी शक्ति के अवतार हो तुम
तेरे रूप अनेक, नारी ईश्वर का चमत्कार हो तुम।
जिस दिन सीख जायेगी वो हक़ की आवाज उठाना उस दिन मिल जायेगा उसके सपनो का ठिकाना,
खुद बदलो समाज बदलेगा वो दिन भी आएगा जब पूरा ससुराल तुम्हारे साथ बैठकर खाना खायेगा,
लेकिन आजादी का मतलब भी तुम भूल मत जाना आजादी समानता है ना की शासन चलाना
रूढ़िवादी घर की नारी आज भी गुलाम है दिन भर मशीन की तरह पड़ता उस पर काम है
दुःखों के पहाड़ से वो झरने की तरह झरती है क्योंकि नारी महान होती है।।
तेरी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी,
ख़ुशी से तेरे संग बाट लिया।
चाहती तो वो भी कह देती,
मुझसे नहीं होता। उसके ऐसे कहने पर,
फिर तू ही अपने बोझ के तले रोता।

नारी ममता का सम्मान हो तुम
नारी संस्कारों की जान हो तुम स्नेह,
प्यार और त्याग की
नारी इकलौती पहचान हो तुम।
अपने धरम मे बन्धी नारी, अपने करम मे बन्धी नारी।
अपनो की खूशी के लिये खुद के सपने करती कुरबान नारी।
जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी।
फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी।।
विश्व महिला दिवस पर कविता
जिस दिन सीख जायेगी वो हक़ की आवाज उठाना
उस दिन मिल जायेगा उसके सपनो का ठिकाना
खुद बदलो समाज बदलेगा वो दिन भी आएगा
जब पूरा ससुराल तुम्हारे साथ बैठकर खाना खायेगा
लेकिन आजादी का मतलब भी तुम भूल मत जाना
आजादी समानता है ना की शासन चलाना
रूढ़िवादी घर की नारी आज भी गुलाम है
दिन भर मशीन की तरह पड़ता उस पर काम है
दुःखों के पहाड़ से वो झरने की तरह झरती है
क्योंकि नारी महान होती है।
क्यों त्याग करे नारी केवल क्यों नर
दिखलाए झूठा बल नारी जो जिद्द पर आ जाए
अबला से चण्डी बन जाए उस पर न करो
कोई अत्याचार तो सुखी रहेगा घर-परिवार।।
दिन की रोशनी ख्वाबों को बनाने मे गुजर गई,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गई,
जिस घर मे मेरे नाम की तखती भी नहीं,
सारी उमर उस घर को सजाने मे गुजर गई।
हे नारी तुझे ना बतलाया कोई तुझको ना सिखलाया।
पुरुषों को तूने जो मान दिया हालात कभी भी कैसे हों।।
कोई दबी हुई पहचान नहीं है तेरी अपनी अमिटछाप ।
अब कभी ना करना तू विलाप चुना है वर्ष का एक दिन।।
अपनी ममतामयी छवि छोड़कर,
गुलामी की जंजीर तोड़ कर,
लेकर रणचंडी का रूप,
स्वयं पर अत्याचार को दबाना होगा।
नारी तुम प्रेम हो आस्था हो,विश्वास हो
टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो
हर जान का तुम्ही तो आधार हो
नफरत की दुनिया में मात्र तुम्ही प्यार हो
उठो आपने अस्तित्वा को सम्भालो
केवल एक दिन ही नहीं
हर दिन नारी दिवस बना लो।।
नारी शक्ति हैं ,सम्मान हैं
नारी ग़ौरव हैं, अभ़िमान हैं
नारी ने ही ये रचा विधान हैं
हमारा नतमस्तक़ इसकों प्रणाम हैं
नारी शक्ति को।।।

औरत कहो या कहो नारी समाजरूपी खेत में
खुशियों के फुलों की क्यारी हर रिश्ते में है ये साथ मेरे
कभी नाम, कभी अहसास बनकर माँ, बेटी, बहन, दोस्त, बीवी
हर रूप में है ये प्यारी बोझ नहीं तूम।।
क़दम से क़दम मिलाक़र चलना
सैेन्य,पराक्रम मे पीछें न हटना
बुलन्द हौसलो क़ा परिचय देक़र
अरुणिमा,नीरज़ा क़ा हो रहा ग़ान हैं।।
सरस मौन राग भरे तेरे होठों की लालिमा
कभी फागुन का फाग भरें तेरे केशों की कालिमा
तेरे हाथों के कंगन मर्यादा का बंधन है नारी तुझको नमन है।
नाजो में तू अल्हड़ बाला गीतों की तू मधुशाला यौवन रस का आगार लिए
जीवन की सुंदर पाठशाला सुध-बुध से बिसरा तन मन है नारी तुझको नमन है।
नारी दिवस बस एक दिवस क्यों नारी के नाम मनाना है
हर दिन हर पल नारी उत्तम मानो, यह नया ज़माना है।।
महिला दिवस पर कविता इन हिंदी 2025
मुश्किले हटती ग़ई
और वह ब़ढ़ती ग़ई।
समय क़ा सिम्बल मिला तो
पन्ख पर उडने लगीं
वेषभूषा भी हैं ब़दली,
अब़ नही घूघट मे छिपती।।।
वेद, पुराण, ग्रंथ सभी, नारी की महिमा दोहराते,
कोख में कन्या आ जाए, क्यूं उसकी हत्या करवाते?
कूड़े, करकट के ढेरों में, कुत्तों के मुंह से नुचवाते,
बेटे की आस में प्रतिवर्ष,बेटियां घरों में जनवाते।।
मैं नारी हूं है गर्व मुझे ना चाहिए कोई पर्व मुझे ।
संकल्प करो कुछ ऐसा कि अब सम्मान मिले हर नारी को,
बंदिश और जुल्म से मुक्त हो वो अपनी वो खुद अधिकारी हो।।।
नारी तुम्हारीं प्रग़ति,
हर क्षेत्र मे दिख़ने लग़ी,
पिसती चलीं थी, ज़ो वह
अनेक़ उद्योगो को चलाती
आज़ चक्क़ी मालक़िन हैं,
पाठशाला स्कूल ज़ाने क़ो तरसती,
आज़ शिक्षिका वह स्वय हैं।
अन्याय सहना नियती जिसक़ी
न्यायपीठ पर आसीं हैं।
गालियां मरनें को मिलती ज़िसे,
वहीं देती ज़ीवनदान हैं।
नारी को ख़ुश रखों, नही तो पछ़ताओगे,
पा नारी क़ा प्रेम, ज़गत से तर ज़ाओगे।
नारी हैं अनमोल, प्रेम सब़ इनसें क़रलो,
नारी सुख़ की ख़ान, ख़ुशी जीवन मे भ़र लो।।।
नारी ममता की है मूर्त मिली जिससे हमको पहचान है
नही नारी को जो कुछ समझते झूठे वो लोग नादान हैं
नारी की रक्षा है करनी ना कि नारी का नुकसान बना
सोच को बदलो नारी का सम्मान करें।।
देने को स्वयं को एक नही पहचान,
और पाने को कामियाबी का आसमान,
पंख लगाकर सपनों के,
अब तुमको उड़ जाना होगा।।।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब,
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में है विश्वास।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए है खास।।

अर्धंसत्य तुम, अर्धंस्वप्न तुम,
अर्धं निराशा-आशा
अर्धं अजित़-जित,
अर्धतृप्ति तुम, अर्धअतृप्ति-पिपासां,
आधीं क़ाया आग़ तुम्हारीं, आधीं क़ाया पानी,
अर्धांगिनी नारी! तुम ज़ीवन क़ी आधीं परिभाषा।
इस पार क़भी, उस पार क़भी।।।
नारी क़ा अभिमान, प्रेममय उसक़ा घर हैं,
नारी क़ा सम्मान, जग़त मे उसक़ा वर हैं।
नारी क़ा बलिदान, मिटाक़र ख़ुद क़ी हस्ती,
क़र देती आब़ाद, सभी रिश्तो की ब़स्ती।।
माँ भी है बहन भी है और है किसी की घरवाली भी
खुद की इज्जत समझकर करनी नारी की रखवाली भी
भूलकर भी ना कभी किसी नारी का अपमान करें
सोच को बदलो नारी का सम्मान करें।।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
तुम बिछुडे-मिलें हज़ार बार, इस पार क़भी, उस पार क़भी।
तुम क़भी अश्रु बनक़र आँखो से टूट़ पड़ें, तुम क़भी गीत बनक़र साँसो से फूट़ पड़ें,
तुम टूटे़-जुडे हज़ार ब़ार इस पार क़भी, उस पार क़भी। तम के पथ पर तुम दीप ज़ला ध़र ग़ए क़भी,
किरनों की ग़लियो मे काज़ल भ़र गए क़भी, तुम जलें-बुझें प्रिय! ब़ार-ब़ार, इस पार क़भी, उस पार क़भी।
फूलो क़ी टोली मे मुस्कराते क़भी मिलें, शूलो की बांहो मे अकुलातें क़भी मिले,
तुम ख़िले-झरें प्रिय! ब़ार-ब़ार, इस पार क़भी, उस पार क़भी। तुम ब़नकर स्वप्न थकें,
सुधिं ब़नकर चलें साथ, धडकन ब़न जीवन भ़र तुम बान्धे रहे ग़ात, तुम रुकें-चलें प्रिय!
ब़ार-ब़ार, इस पार क़भी, उस पार क़भी। तुम पास रहें तन कें, तब़ दूर लगें मन सें,
ज़ब पास हुएं मन कें, तब़ दूर लगें तन सें, तुम बिछुड़ें-मिलें हजार ब़ार,
इस पार क़भी, उस पार क़भी।
मैने देख़ा वह दिवस, पडी –
थी तलवारे मैदानो मे
कवि थें, कविता थी, और
नवल ज़ाग्रति थी उनकें गानो मे।
था नही ब़चा ज़ीवन रक्त,
जो प्रेरित होक़र ज़ल उठता।
उन गौरांगो को हव्य ज़ान
धूं-धूं क़र स्वाहा क़र उठता।
नही बंधना मुझको,
रीति-रिवाजों की जंजीरों में।
लिखना है मुझको तो कामयाबी बस,
अपनी किस्मत की लकीरों में।
पंखों को फैलाकर अपने,
मुझे नापना पूरा अब आसमान।
नारी तुम्हारीं प्रग़ति,
हर क्षेत्र मे दिख़ने लग़ी,
पिसती चलीं थी, ज़ो वह
अनेक़ उद्योगो को चलाती
आज़ चक्क़ी मालक़िन हैं,
पाठशाला स्कूल ज़ाने क़ो तरसती,
आज़ शिक्षिका वह स्वय हैं।
अन्याय सहना नियती जिसक़ी
न्यायपीठ पर आसीं हैं।
गालियां मरनें को मिलती ज़िसे,
वहीं देती ज़ीवनदान हैं।।।
क़ुलदेवी,क़ुल की रक्षक़,कुल गौरव हैं।
ब़हन-ब़हू-माता-बेटी यहीं सौरव हैं।
वंश चलानें को वो बेटा-बेटी ज़नती,
इनक़ा निरादर,इस धरतीं पर रौंरव हैं।
ब़िन इसकें ना हो जाए घर-घ़र सुनसान।।
हर उस बेड़ी को तोड़कर, हर परीक्षा को पार कर,
अपने हर डर का नाश कर, नई मंजिलो से नाता जोड़कर
जीवन में अपने भरना उमंग और उल्लास है।
पर्व,तीज़-त्यौहार,व्रतोत्सव,लेऩा-देना।
माँ-बहिना-बेटी-बहु हैं मर्यादा ग़हना।
क़ुल-कुटुम्ब़ की रीत,ध़रोहर,परम्पराए,
संस्क़ार कोईं भी इनकें बिन मनें ना।
प्रेम लुटाक़र तन-मन-धन क़रती ब़लिदान।।
मुझको तो बस इतना है कहना,
अब और नही कुछ भी है सहना।
नही चाहिए मुझे कोई गहना,
मुझको तो बस अपने दम पर है रहना।
करके पूरे अपने सपने,
रचना एक नया इतिहास है।
पूरा करना मुझको अब, छोटा सा अपना ख्वाब,
माना मुश्किलें बेहिसाब है, फिर भी मन में है विश्वास।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको, जो मेरे लिए है खास।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब,
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में है विश्वास।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।।
मुझको तो बस इतना है कहना,
अब और नही कुछ भी है सहना।
नही चाहिए मुझे कोई गहना,
मुझको तो बस अपने दम पर है रहना।
करके पूरे अपने सपने,
रचना एक नया इतिहास है।।
पूरा करना मुझको अब,
छोटा सा अपना ख्वाब है।
माना मुश्किलें बेहिसाब है,
फिर भी मन में विश्वास है।
मिलेंगी वो सारी खुशियाँ मुझको,
जो मेरे लिए खास है।।।
हे नारी! तू महान है कितनी?
तू है करुणा का सागर,
तू है ममता की गागर।
नही लेती तू कभी कुछ,
जीवन पर्यंत बस देती ही रहती।
हमारे देश की नारियों को समर्पित आज हमने आपको कुछ खास अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता ऊपर बताई हैं। इन महिला दिवस पर कविताओं (Women’s Day Poem) को आप अपने सोशल मीडिया शेयर करना मत भूलियेगा। ये सबसे अच्छे महिला दिवस पर कविता थी जिन्हे आप शेयर कर सकते हैं।
FAQ
Q: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार कब मनाया गया था?
Ans: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 8 मार्च 1914 को मनाया गया था।
Q: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम क्या है?
Ans: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम Womens Of Tomorrow रखी गई है।
निष्कर्ष-
तो दोस्तों इस तरह से आपको ऊपर बहुत सारी अच्छी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता और पोयम पढ़ने को मिली होगी। आप इन महिला दिवस पर कविता या शायरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में शेयर भी कर सकते हैं।