Best Hindi Diwas Kavita in Hindi, Short Hindi Diwas Kavita, Hindi Diwas Par Kavita (हिंदी दिवस पर छोटी सी कविता, हिंदी दिवस पर कविता छोटी सी)
जय हिन्द दोस्तों, 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा द्वारा हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था।
इस महत्वपूर्ण घटना के उपलक्ष्य में, देश भर में हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने और इसके महत्व को उजागर करने के लिए हर साल 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है।
इस दिन देशभर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। हिंदी दिवस के मौके पर कविता पाठ का आयोजन भी किया जाता है।
इसीलिए इस लेख में hindimeinfo.com आपके लिए हिंदी दिवस पर कविताएं (Hindi Diwas par Kavita) लेकर आया है। दोस्तों अगर आप भी हिंदी दिवस (Hindi Diwas) पर अपने स्कूल, कॉलेज या अपने दफ्तर में हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas Kavita) प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं
और हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas par Kavita) देकर अपने विचार सबके सामने रखना चाहते हैं, तो आप हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas par Kavita) इस्तेमाल हिंदी दिवस के अवसर पर कविता पाठ प्रतियोगिता में कर सकते हैं।
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हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas Kavita)
हिन्दी की मिठास, हिन्दी की बात, हिन्दी के बिना, अधूरा है सब कुछ। शब्दों का जादू, भाषा की शान, हिन्दी हमारी प्यारी, बढ़ाती मान। हिन्दी के सौंदर्य, है अद्वितीय, हर शब्द में छुपा है अमूल्य रत्न। हिन्दी दिवस पर, हम सब मिलकर, इसे बढ़ावा दें, बनाएं महान। हिन्दी को जन्म दिन की शुभकामनाएँ।
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का। यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन। उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
दो वर्तमान का सत्य सरल, सुंदर भविष्य के सपने दो। हिंदी है भारत की बोली, तो अपने आप पनपने दो। यह दुखड़ों का जंजाल नहीं, लाखों मुखड़ों की भाषा है। थी अमर शहीदों की आशा, अब जिंदों की अभिलाषा है। मेवा है इसकी सेवा में, नयनों को कभी न झंपने दो। हिंदी है भारत की बोली तो अपने आप पनपने दो।
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा। बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती। कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती। आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही। इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
बनने चली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी, सिंहासन पर अंग्रेजी है, लखकर दुनिया हांसी, लखकर दुनिया हांसी, हिन्दी दां बनते चपरासी, अफसर सारे अंग्रेजी मय, अवधी या मद्रासी, कह कैदी कविराय, विश्व की चिंता छोड़ो, पहले घर में, अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो।
भारत की आशा है हिंदी, जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है, वो मज़बूत धागा है हिंद, हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी, एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी, जिसके बिना हिन्द थम जाए, ऐसी जीवन रेखा है हिंदी, जिसने काल को जीत लिया है, ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी, सरल शब्दों में कहा जाए तो, जीवन की परिभाषा है हिंदी।
हिंदी थी वो जो लोगो के दिलों में उमंग भरा करती थी, हिंदी थी वह भाषा जो लोगों के दिलों मे बसा करती थी, हिंदी को ना जाने क्या हुआ, रहने लगी हैरान परेशान, पूछा तो कहती है, अब कहां है मेरा पहले सा सम्मान।
हिंदी-हिंदू हिन्दुस्तान, कहते हैं, सब सीना तान, पल भर के लिये जरा सोंचे इन्सान, रख पाते हैं हम इसका कितना ध्यान, सिर्फ 14 सितम्बर को ही करते है, अपनी हिंदी भाषा का सम्मान।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही। इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार, और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार। बढ़ायो बस उसका विस्तार। करो अपनी भाषा पर प्यार।
हिंदी थी वो जो लोगो के दिलों में उमंग भरा करती थी, हिंदी थी वह भाषा जो लोगों के दिलों मे बसा करती थी, हिंदी को ना जाने क्या हुआ, रहने लगी हैरान परेशान, पूछा तो कहती है, अब कहां है मेरा पहले सा सम्मान।
गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार; राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार; हिन्दी का जयकार, हिन्दी हिन्दी में बोला; देख स्वभाषा-प्रेम, विश्व अचरज से डोला; कह कैदी कविराय, मेम की माया टूटी; भारत माता धन्य, स्नेह की सरिता फूटी!
उच्चवर्ग की प्रिय अंग्रेजी, हिंदी जन की बोली है, वर्ग भेद को खत्म करेगी, हिंदी वह हमजोली है, सागर में मिलती धाराएँ, हिंदी सबकी संगम है, शब्द, नाद, लिपि से भी आगे, एक भरोसा अनुपम है, गंगा कावेरी की धारा, साथ मिलाती हिंदी है।
मेरी भाषा में तोते भी राम राम जब कहते हैं, मेरे रोम रोम में मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं। सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोड़ूंगा, वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोड़ूंगा।
उच्चवर्ग की प्रिय अंग्रेजी, हिंदी जन की बोली है, वर्ग भेद को खत्म करेगी, हिंदी वह हमजोली है, सागर में मिलती धाराएँ, हिंदी सबकी संगम है, शब्द, नाद, लिपि से भी आगे, एक भरोसा अनुपम है, गंगा कावेरी की धारा साथ मिलाती हिंदी है।
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी, चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना। भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की, स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना।
माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी, हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी, घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी, स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी, तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए, ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी।
होठ खामोश थे सिसकियाँ कह गयी, द्वार बंद थे खिड़कियाँ कह गयी, कुछ हमने कहा कुछ हिंदी कह गयी, जो न कह पायें वो हिचकियाँ कह गयी।
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान, सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान। असंख्यक हैं इसके उपकार। करो अपनी भाषा पर प्यार।
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद, और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद। बनाओ इसे गले का हार। करो अपनी भाषा पर प्यार॥
हिंदी दिवस पर छोटी कविता (Hindi Diwas par short kavita)
संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी। बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है, ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है, मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है, साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है, कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है, निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है, उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
हिन्दी मेरे रोम-रोम में, हिन्दी में मैं समाई हूँ, हिन्दी की मैं पूजा करती, हिन्दोस्तान की जाई हूँ।
हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान है, हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरण, हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण।
हिंदी दिवस पर हमने ठाना है, लोगों में हिंदी का स्वाभिमान जगाना है, हम सब का अभिमान है हिंदी, भारत देश की शान है हिंदी…
हर कण में हैं हिन्दी बसी, मेरी मां की इसमें बोली बसी, मेरा मान है हिन्दी, मेरी शान है हिन्दी…
वक्ताओं की ताकत भाषा, लेखक का अभिमान हैं भाषा, भाषाओं के शीर्ष पर बैठी, मेरी प्यारी हिंदी भाषा…
भारत के गांव की शान है हिंदी, हिन्दुस्तान की शक्ति हिंदी, मेरे हिन्द की जान हिंदी, हर दिन नया वाहन हिंदी…
हिंदी से हिन्दुस्तान है, तभी तो यह देश महान है, निज भाषा की उन्नति के लिए, अपना सब कुछ कुर्बान है…
हिन्दी हमारी मातृभाषा है, इसे हर दिन बोलें और हिन्दी दिवस के इस दिन, सबको हिन्दी में बोलने के लिए उत्साहित करें।
हिन्दी का सम्मान, देश का सम्मान है, हमारी स्वतंत्रता वहां है, हमारी राष्ट्र भाषा जहां है…
सारे देश की आशा है, हिन्दी अपनी भाषा है, जात-पात के बंधन को तोड़ें, हिन्दी सारे देश को जोड़े…
जैसे रंगों के मिलने से, खिलता है बसंत, वैसे भाषाओं की मिश्री सी, बोली है हिन्दी।
गर्व हमें है हिंदी पर, शान हमारी हिन्दी है, कहते-सुनते हिन्दी हम, पहचान हमारी हिन्दी है…
हिन्दी पढ़ें, हिन्दी पढ़ाएं, मातृभाषा की सेवा कर, देश को महान बनाएं…
निज भाषा का नहीं गर्व जिसे, क्या प्रेम देश से होगा उसे, वहीं वीर देश का प्यारा है, हिंदी ही जिसका नारा है।
है भारत की आशा हिन्दी, है भारत की भाषा हिंदी…
हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरण, हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण।
हिंदी हमारी वेदना हिंदी हमारा गान है। हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
हिंदी हमारी आत्मा है भावना का साज़ है, हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है।
हिंदी हमारी अस्मिता हिंदी हमारा मान है। हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है, हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है।
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है। हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे, तब तक वतन की राष्ट्रभाषा ये अमर हिंदी रहे।
हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा, कितना अच्छा व कितना प्यारा है ये नारा।
हिंदी हम सब की ख़ुशहाली, हिंदी विकास की रेखा है। हिंदी में ही इस धरती ने, हर ख़्वाब सुनहरा देखा है।
हिंदी में बात करें तो मूर्ख समझे जाते हैं। अंग्रेजी में बात करें तो जैंटलमेल हो जाते।
अंग्रेजी का हम पर असर हो गया। हिंदी का मुश्किल सफ़र हो गया।
निजभाषा-साहित्य-सृजन का, भाव जगाए भाषा हिंदी। बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी, ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी, सूर, जायसी, तुलसी कवियों की, सरित-लेखनी से बही हिन्दी।
अन्य सभी चर्चित भाषाओं, सा ही प्यार-दुलार मिले, विश्वपटल पर हिंदी को भी, न्यायोचित अधिकार मिले।
पूरे हों संकल्प सभी के,जन-गण-मन-अभिलाषा हिंदी। बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
हिंदी का सारी भाषाओं, से, रिश्ता है, नाता है, भारतवंशी कहीं रहे, पर, हिंदी में इठलाता है।
अब मैं आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ, हिंदी की सबसे हिफाज़त चाहती हूँ।
देसी घी आजकल बटर हो गया, चाकू भी आजकल कटर हो गया।
हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है। हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
समता-स्नेह-समन्वय का, संदेश बने जनभाषा हिंदी। बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
भारत की गौरव-गरिमा का, गान बने हिंदी भाषा, अंतरराष्ट्रीय मान और, सम्मान बने हिंदी भाषा।
स्वाभिमान-सद्भाव जगाती,संस्कृति की परिभाषा हिंदी, बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
हिंदुस्तान बिना हिंदी के, अर्थहीन है, रीता है, देश हमारा हिंदी में, सांसें ले-लेकर जीता है।
है स्वर्णिम भविष्य की सुंदर, मोहक-मधुर दिलाशा हिंदी। बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।।
गाँधीजी का सपना ही था, ऐसा हिंदुस्तान बने, जाति-धर्म से ऊपर हिंदी, भारत की पहचान बने।
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती हिंदी। कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती हिंदी।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही। इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
वैसे तो हर वर्ष बजता है नगाड़ा, नाम लूँ तो नाम है हिंदी पखवाड़ा।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय, यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
हिंदी इस देश का गौरव है, हिंदी भविष्य की आशा है।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार, सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
सर्वमान्य भाषा बनकर हो, पूरित जन की आशा हिंदी। बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
दुनिया भर की भाषाओं का, हिंदी में अनुवाद करें, हम सब मिलकर विश्वमंच पर, हिंदी में संवाद करें॥
हिन्दी से पहचान हमारी, बढ़ती इससे शान हमारी, माँ की कोख से जाना जिसको, माँ,बहना, सखि-सहेली हिन्दी।
सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय, उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात, विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय, लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।
हिंदी हर क्षेत्र में आगे है, इसको अपनाकर नाम करें। हम देशभक्त कहलाएंगे, जब हिंदी में सब काम करें।
अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन, पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय, निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग, तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
निज भाषा पर गर्व जो करते, छू लेते आसमाँ न डरते, शत-शत प्रणाम सब उनको करते, स्वाभिमान…..अभिमान है हिन्दी।
हिन्दी मेरे रोम-रोम में, हिन्दी में मैं समाई हूँ, हिन्दी की मैं पूजा करती, हिन्दोस्तान की जाई हूँ।
इसको कबीर ने अपनाया, मीराबाई ने मान दिया। आज़ादी के दीवानों ने, इस हिंदी को सम्मान दिया।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात, निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
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