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आपने कुछ दिनों से सेंगोल (Sengol) का नाम सुना होगा, और अगर नहीं सुना तो आपको भी इसके बारे में जानना बहुत जरुरी है। 

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देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सेंगोल (Sengol) को 14 अगस्त 1947 को अंग्रेज़ों से स्वीकार किया था। 

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इसका हमारे भारत देश के इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। इसे नई संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल में रखा जएगा।

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सेंगोल शब्द तमिल शब्द “सेम्मई” से लिया गया है जिसका अर्थ है ” नीतिपरायणता“। ये न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन का एक पवित्र प्रतीक है।

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पीएम मोदी को जब इसके बारे में पता चला तो इसकी जांच की गई। फिर तय किया गया कि नए संसद के उद्धाटन के दौरान देश के सामने रखा जाएगा।

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सेंगोल के पीछे युगों पुरानी एक परंपरा जुड़ी हुई है। सेंगोल हमारे देश के इतिहास की पहचान है, जिसके बारे में सभी को पता होना चाइये। 

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सेंगोल को मद्रास के एक प्रसिद्ध स्वर्णकार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी (Vummidi Bangaru Chetty) ने निर्मित किआ है।

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सेंगोल को सोने और चांदी की परत चढ़ाकर बनाया गया है। इसे बनाने में 10 स्वराड शिल्पकारों के एक दल ने 10-15 दिन में बनाकर तैयार किआ है।

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सेंगोल (Sengol) के बारे में और अधिक जानकारी के लिए निचे दी गयी लिंक में क्लिक करें और इसके बारे में संछिप्त में जाने।