Web 3.0 के बारे में पिछले कुछ समय से लगातार चर्चा हो रही है। कोई कह रहा है, Web 3.0 इंटरनेट यूज करने का तरीका बदल देगा, कोई ये कह रहा है कि Web 3.0 ही मेटावर्स है।

कई एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि Web 3.0 आने के बाद इंटरनेट डीसेंट्रलाइज्ड हो जाएगा। Web 3.0 को क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। 

Web 3.0 को समझने के लिए Web 1.0 से शुरू करते हैं। 1989 में World Wide Web यानी WWW की शुरुआत हुई। तब का इंटरनेट अब के इंटरनेट से काफी अलग था।  

Web 2.0 यानी मौजूदा इंटरनेट एक तरह से कंट्रोल किया जाता है और डिसेंट्रलाइज्ड नहीं है। इंटरनेट का ज्यादातर कॉन्टेंट आप गूगल के जरिए सर्च करते हैं और गूगल एक प्राइवेट कंपनी है। 

गूगल चाहे तो अपने सर्च इंजन को अपने फायदे के लिए यूज कर सकता है। कई बार कंपनी पर आरोप भी लगे हैं कि अपने फायदे के लिए गूगल सर्च रिजल्ट में गड़बड़ी की गई है।

इसी तरह दूसरा उदाहरण मेटा (पहले फेसबुक) है। मेटा के कई प्लैटफॉर्म हैं WhatsApp, Instagram और Facebook इनमें प्रमुख हैं। 

फेसबुक और गूगल दोनों ही कंपनियों अपने अपने स्पेस में राज कर रही हैं। एक तरह से ये इनकी मोनॉपली कही जा सकती है।

Web 3.0 कॉन्सेप्ट इसी मोनॉपली को खत्म करना है। Web 3.0 में कोई एक कंपनी नहीं होगी, बल्कि हर यूजर ही अपने अपने कॉन्टेंट के मालिक होंगे।  

Web 3.0 आने के बाद आपके पास ज्यादा पावर होंगे। आपका कॉन्टेंट आपका ही होगा और इसके बदले आपको टोकन मिलेगा। 

चाहे आप अपना कॉन्टेंट किसी भी प्लैटफॉर्म पर पोस्ट करें उस कॉन्टेंट का राइट आपके पास होगा। जैसा की अभी ऐसा नहीं है। 

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