भारत की आजादी के लिए कई वीरों  ने अपने जान की कुर्बानी दी थी। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा भी शख्स था जिसने आजादी की क्रांति का बिगुल 1857 में ही फूंक दिया था।

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मंगल पाण्डेय के बलिदान के 165 साल बाद भी युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं।  वे सन् 1857 की क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले वीर सिपाही थे।

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क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था।

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1850 के दशक में सिपाहियों के लिए नई इनफील्ड राइफल लाई गई थी। लेकिन इसमें लगने वाली कारतूसों को मुंह से काटकर राइफल में लोड करना होता था।

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बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाहियों को पता चला कि इनमें लगने वाली कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। जानने के बाद सिपाहियों ने नाराजगी जताई।

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इसी बात पर 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया, उस वक्त वह बंगाल के बैरकपुर छावनी में तैनात थे।

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उन्होंने न केवल कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ़ मना कर दिया बल्कि साथी सिपाहियों को ‘मारो फिरंगी को’ नारा देते हुए सैन्य विद्रोह के लिए प्रेरित किया।

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उसी दिन दो अंग्रेज अफसरों पर भी हमला कर दिया था। बाद में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया और उन्होंने अंग्रेज अफसरों के खिलाफ अपने विद्रोह की बात स्वीकार की।

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उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और तारीख तय की गई 18 अप्रैल। लेकिन बगावत के डर से फिर मंगल पाण्डेय को 10 दिन पहले ही यानी 8 अप्रैल को ही उन्हें फांसी दे दी गई।

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इस घटना के बाद सैन्य बगावत हुई जिसने बाद आजादी के पहले संग्राम का उदय हुआ भारत में ये भरोसा पैदा हुआ कि अंग्रेज़ों को हराना संभव है।

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और फिर मंगल पांडे के इस सैन्य विद्रोह के 90 साल बाद भारत को आज़ादी मिल गई। एसे वीर का बलिदान नहीं भूलेंगे हम।

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ये था क्रांतिकारी मंगल पांडे का जीवन परिचय। इस तरह की और स्टोरी के लिए निचे दी गयी लिंक में क्लिक करें।